परिचय: पर्वतारोहण में जल शुद्धिकरण का महत्व
भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में ट्रेकिंग या पर्वतारोहण करते समय शुद्ध पानी की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती होती है। पहाड़ों में प्राकृतिक जल स्रोत जैसे नदियाँ, झरने, और तालाब अक्सर दूषित हो सकते हैं क्योंकि उनमें बैक्टीरिया, वायरस, और अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीव मिल सकते हैं। भारत के हिमालयी क्षेत्र, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम या अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में ट्रेकिंग करने वाले लोगों को सुरक्षित और स्वच्छ पानी मिलना बेहद जरूरी है।
पर्वतीय क्षेत्रों में अशुद्ध जल से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम
अगर आप बिना जल शुद्धिकरण के पानी पीते हैं तो डायरिया, टायफाइड, हेपेटाइटिस ए और गैस्ट्रोएन्टेराइटिस जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। पहाड़ों पर मेडिकल सहायता सीमित होती है, इसलिए यह जोखिम और भी गंभीर हो जाता है। खासकर मानसून के मौसम में जल स्रोतों में गंदगी और बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ जाती है। नीचे दिए गए टेबल में पहाड़ी इलाकों में मिलने वाले प्रमुख जलजनित संक्रमण और उनके लक्षण दर्शाए गए हैं:
| संक्रमण का नाम | मुख्य लक्षण | बचाव का तरीका |
|---|---|---|
| डायरिया | बार-बार दस्त आना, कमजोरी | शुद्ध पानी का सेवन |
| टायफाइड | तेज बुखार, सिर दर्द, पेट दर्द | जल शुद्धिकरण जरूरी |
| हेपेटाइटिस ए | पीलिया, उल्टी, थकान | साफ पानी व सफाई का ध्यान रखें |
| गैस्ट्रोएन्टेराइटिस | उल्टी, दस्त, पेट दर्द | बोतलबंद या फिल्टर्ड पानी पिएं |
भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में जल शुद्धिकरण क्यों जरूरी?
भारत के कई पहाड़ी इलाकों में स्थानीय लोग पारंपरिक स्रोतों से पानी पीते हैं, लेकिन पर्यटकों एवं ट्रेकर्स के लिए यह सुरक्षित नहीं होता। कभी-कभी पानी साफ दिखता है लेकिन उसमें हानिकारक सूक्ष्मजीव होते हैं जिन्हें केवल उबालने या वाटर प्योरीफिकेशन सिस्टम की मदद से ही हटाया जा सकता है। इसीलिए पर्वतारोहण पर जाते समय सही वाटर प्योरीफिकेशन सिस्टम चुनना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। अगले भागों में हम जानेंगे कि कौन-कौन से वाटर प्योरीफिकेशन सिस्टम इन परिस्थितियों में सबसे उपयुक्त माने जाते हैं।
2. भारतीय पर्वतीय क्षेत्रों में उपलब्ध जल स्रोत
भारतीय पर्वतीय इलाकों में मिलने वाले जल स्रोत
भारत के पर्वतीय क्षेत्रों जैसे हिमालय, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में पर्वतारोहण या ट्रेकिंग करते समय पानी के लिए कई प्राकृतिक स्रोत मिलते हैं। सबसे आम जल स्रोत हैं:
| जल स्रोत | विवरण | दूषण की संभावना | उदाहरण |
|---|---|---|---|
| नदी (River) | बड़ी नदियाँ जो पहाड़ों से निकलती हैं, जैसे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि। | मध्यम से उच्च (मानव बस्ती या पशुओं की गतिविधि के कारण) | भागीरथी, मंदाकिनी नदी |
| झरना (Waterfall/Spring) | पहाड़ों की ढलानों से बहता ताजा पानी; अक्सर पथरीले क्षेत्रों में मिलता है। | कम (यदि ऊँचाई पर हो और मानव पहुँच कम हो) | गंगोत्री ग्लेशियर का झरना, हेमकुंड साहिब के पास झरने |
| बर्फ (Snow/Ice melt) | गर्मियों में पिघलती बर्फ या ग्लेशियर का पानी। | बहुत कम (ऊँचाई पर दूषण कम होता है) | सतोपंथ लेक, रूपकुंड क्षेत्र की बर्फ |
| प्राकृतिक स्त्रोत (Natural Springs) | जमीन के नीचे से निकलता साफ पानी; स्थानीय लोग इसे चश्मा कहते हैं। | कम से मध्यम (स्त्रोत की स्थिति पर निर्भर करता है) | यमुनोत्री चश्मा, बद्रीनाथ क्षेत्र के प्राकृतिक स्त्रोत |
इन जल स्रोतों में दूषण की संभावना क्यों?
- मानव गतिविधि: पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ती पर्यटन गतिविधि और गाँवों के पास नदियों-झरनों में कचरा फेंका जाता है। इससे पानी दूषित हो सकता है।
- पशु पालन: पहाड़ों में चराई करने वाले जानवर नदी/झरनों को दूषित कर सकते हैं।
- बारिश/भूस्खलन: बारिश से मिट्टी और गंदगी पानी में मिल सकती है। इसलिए ऊँचाई वाला ताजे झरने का पानी अपेक्षाकृत शुद्ध माना जाता है।
- बर्फ/ग्लेशियर: बर्फ पिघलकर मिलने वाला पानी आमतौर पर शुद्ध रहता है, लेकिन कभी-कभी उसमें सूक्ष्म जीवाणु हो सकते हैं।
सुरक्षित पर्वतारोहण के लिए सुझाव:
- हमेशा दिखने में साफ पानी भी प्योरीफिकेशन सिस्टम से फिल्टर करें।
- भीड़-भाड़ वाली जगहों या गाँवों के पास के जल स्रोत का प्रयोग करने से बचें।
- प्राकृतिक चश्मा या ऊँचाई वाले झरनों का चयन करें जहां मानव गतिविधि कम हो।
- बर्फ पिघलाकर मिलने वाले पानी को भी उबालना या फिल्टर करना बेहतर है।
निष्कर्षतः:
भारतीय पर्वतीय क्षेत्रों में नदी, झरना, बर्फ और प्राकृतिक स्त्रोत आम जल स्रोत हैं; इनमें दूषण की संभावना उनकी स्थिति और आसपास की गतिविधियों पर निर्भर करती है। अगली बार जब आप ट्रेकिंग पर जाएं तो इन बातों का ध्यान रखें और उपयुक्त वाटर प्योरीफिकेशन सिस्टम चुनें!

3. पर्वतारोहण के लिए लोकप्रिय जल शुद्धिकरण तकनीकें
फिल्टर (Filter) – भारतीय पर्वतीय इलाकों में उपयुक्तता
फिल्टर एक बहुत ही आम और भरोसेमंद तरीका है, खासकर हिमालय जैसे क्षेत्रों में। भारत के पर्वतीय गांवों में भी लोग पानी छानने के लिए पारंपरिक कपड़े या मिट्टी के फिल्टर का उपयोग करते हैं। आधुनिक पोर्टेबल वाटर फिल्टर, जैसे की लाइफस्ट्रॉ, हाइकर्स और ट्रेकर्स के बीच लोकप्रिय हो गए हैं। ये न केवल गंदगी हटाते हैं बल्कि बैक्टीरिया और परजीवी भी रोक सकते हैं।
| फिल्टर का प्रकार | लाभ | कमियां |
|---|---|---|
| पोर्टेबल पंप फिल्टर | तेज़ सफाई, बार-बार इस्तेमाल योग्य | वजन थोड़ा ज़्यादा, सफाई करनी पड़ती है |
| ग्रैविटी बैग फिल्टर | हाथ नहीं लगाना पड़ता, ग्रुप के लिए अच्छा | धीमा काम करता है, सेटअप चाहिए |
| स्ट्रॉ फिल्टर (जैसे लाइफस्ट्रॉ) | बहुत हल्का, तुरंत इस्तेमाल करें | सीमित मात्रा, गंदा पानी पीना पड़ सकता है |
यूवी पेन (UV Pen) – आधुनिक भारतीय ट्रेकर्स की पसंद
यूवी पेन हाल के वर्षों में भारत में बहुत लोकप्रिय हुआ है। यह इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस अल्ट्रावायलेट लाइट से पानी में मौजूद बैक्टीरिया, वायरस और प्रोटोजोआ को मार देता है। बस बोतल में पानी भरें, यूवी पेन डालें और निर्देशानुसार घुमाएं; कुछ ही मिनटों में पानी पीने योग्य हो जाता है। लद्दाख या उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में जब बहता पानी साफ दिखता है लेकिन उसमें सूक्ष्म जीवाणु हो सकते हैं, तो यूवी पेन एक बेहतरीन विकल्प साबित होता है। ध्यान रहे कि यूवी पेन बैटरी से चलता है और कीचड़ या मटमैला पानी पहले छानना जरूरी होता है।
केमिकल टैबलेट्स – सस्ती और पोर्टेबल भारतीय विधि
भारत में पहाड़ों पर कई बार रसायनिक टैबलेट्स (जैसे क्लोरीन या आयोडीन) का उपयोग किया जाता है। ये टैबलेट्स वजन में हल्की होती हैं और आसानी से किसी भी मेडिकल स्टोर या ऑनलाइन उपलब्ध हैं। ग्रामीण इलाकों में अक्सर लोग पुराने जमाने से फिटकरी (एलम) या तुलसी की पत्तियों का उपयोग भी करते रहे हैं, जिससे पानी शुद्ध होता है। आधुनिक टैबलेट्स 30-45 मिनट में बैक्टीरिया व वायरस को नष्ट कर देती हैं, लेकिन इनका स्वाद थोड़ा अलग हो सकता है जो सबको पसंद नहीं आता। बच्चों या गर्भवती महिलाओं के लिए डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है।
| तकनीक | प्रमुख लाभ | संभावित सीमाएं/चुनौतियां | भारतीय परिप्रेक्ष्य में उपयोगिता |
|---|---|---|---|
| फिल्टर सिस्टम्स | जल्दी काम करता है, मल्टीपल बार इस्तेमाल हो सकता है | सफाई व रखरखाव जरूरी, कभी-कभी भारी भी होते हैं | हिमालयीन ट्रेकिंग ग्रुप्स और व्यक्तियों के लिए बढ़िया विकल्प |
| यूवी पेन डिवाइस | तेज़, प्रभावी, बिना किसी स्वाद परिवर्तन के पानी शुद्ध करता है | बैटरी खत्म होने पर दिक्कत हो सकती है, मटमैले पानी के लिए उपयुक्त नहीं | शहरी ट्रेकर्स एवं हल्के यात्रा प्रेमियों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है |
| केमिकल टैबलेट्स (क्लोरीन/आयोडीन) | बहुत हल्की व सस्ती, लंबी अवधि तक संग्रहण संभव | स्वाद बदल सकता है, एलर्जी संभव, प्रतीक्षा समय अधिक (30+ मिनट) | ग्रामीण एवं दूरस्थ इलाकों में सुविधा जनक विकल्प; आपातकालीन स्थितियों के लिए उत्तम |
भारतीय सांस्कृतिक दृष्टिकोण से चयन कैसे करें?
अगर आप पारंपरिक तरीकों को महत्व देते हैं तो कपड़े या मिट्टी का फिल्टर आज़मा सकते हैं; वहीं आधुनिक ट्रेकिंग गियर की चाह रखने वालों को यूवी पेन या पोर्टेबल फिल्टर्स सबसे अच्छे लगेंगे। बजट कम हो तो रासायनिक टैबलेट्स भारतीय बाजारों में आसानी से मिल जाती हैं। इन सभी तकनीकों को चुनते वक्त अपने ट्रेकिंग क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और स्थानीय जल स्रोत की गुणवत्ता पर जरूर ध्यान दें। भारत की विविध संस्कृति और जल स्रोतों को देखते हुए प्रत्येक ट्रेकर अपनी सुविधा अनुसार सही तकनीक चुन सकता है।
4. भारतीय पर्वतारोहियों की पसंदीदा प्रणालियां
स्थानीय पर्वतारोहण समुदाय के अनुभव
भारत में पर्वतारोहण करने वाले लोग आमतौर पर वाटर प्योरीफिकेशन सिस्टम चुनने में अपने अनुभव और क्षेत्रीय जरूरतों को ध्यान में रखते हैं। हिमालयी क्षेत्रों में पर्वतारोही प्रायः हल्के, पोर्टेबल और तेज़ काम करने वाले सिस्टम पसंद करते हैं। स्थानीय गाइड्स अक्सर बताते हैं कि ग्रेविटी-बेस्ड फिल्टर्स और UV प्योरीफायर्स पहाड़ों में बहुत उपयोगी रहते हैं, क्योंकि यह न केवल बैक्टीरिया बल्कि वायरस को भी हटाते हैं। कई अनुभवी ट्रैकर्स सस्ते टेबलेट्स या ड्रॉप्स का इस्तेमाल करते हैं, खासकर छोटी टीमों या कम बजट वालों के लिए।
बजट विकल्प
भारत में हर पर्वतारोही का बजट अलग होता है, इसीलिए बाजार में कई तरह के विकल्प उपलब्ध हैं। नीचे एक तालिका दी गई है जिसमें आम तौर पर इस्तेमाल होने वाले प्योरीफिकेशन सिस्टम्स की कीमतें और उनकी विशेषताएं शामिल हैं:
| प्योरीफिकेशन सिस्टम | अनुमानित कीमत (INR) | मुख्य लाभ | कमियाँ |
|---|---|---|---|
| UV पेन (जैसे SteriPEN) | ₹3500-₹6000 | तेज़, हल्का, वायरस व बैक्टीरिया दोनों हटाता है | बैटरी डिपेंडेंट, मटमैले पानी में कम असरदार |
| ग्रेविटी फिल्टर (जैसे LifeStraw Mission) | ₹3000-₹8000 | शुद्धिकरण के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती, बड़ी टीमों के लिए अच्छा | थोड़ा भारी हो सकता है, सेटअप में समय लगता है |
| केमिकल टेबलेट्स (Aquatabs, Chlorine drops) | ₹200-₹500 प्रति पैक | बहुत हल्का, किफायती, इमरजेंसी के लिए बढ़िया | स्वाद बदल सकता है, कुछ वायरस पर सीमित असरदार |
| पोर्टेबल पंप फिल्टर (Katadyn, Sawyer Mini) | ₹2500-₹6000 | हल्का, व्यक्तिगत उपयोग के लिए उपयुक्त | पंपिंग में मेहनत लगती है, क्लॉग हो सकता है |
भारत में उपलब्ध प्रमुख ब्रांड्स
भारत में अब अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय दोनों तरह के ब्रांड्स उपलब्ध हैं। सबसे लोकप्रिय ब्रांड्स में SteriPEN, Lifestraw, Kent Outdoor Water Purifier, Sawyer Mini Filter, और Aquatabs शामिल हैं। हाल ही में कुछ भारतीय कंपनियाँ भी सस्ते और विश्वसनीय विकल्प पेश कर रही हैं। खरीदारी से पहले स्थानीय दुकानदार या अनुभवी पर्वतारोहियों की सलाह लेना फायदेमंद रहता है।
पर्वतारोहण समुदाय की सलाहें:
- Lifestraw Personal Filter: भारत के कई ट्रेकर्स इसे पसंद करते हैं क्योंकि यह बहुत हल्का है और 4000 लीटर तक पानी साफ कर सकता है।
- SteriPEN UV Purifier: जब बैटरी चार्ज रखने की सुविधा हो तो यह सिस्टम सबसे तेज़ और भरोसेमंद माना जाता है।
- Aquatabs: कम बजट वालों के लिए यह सबसे आसान और किफायती समाधान है।
समुदाय की टिप:
“अगर ग्रुप बड़ा है तो ग्रेविटी फिल्टर या पंप सिस्टम बढ़िया रहता है; अगर अकेले ट्रैक कर रहे हों तो UV पेन या टेबलेट्स रख लें।” – मनाली बेस कैंप गाइड
5. सुझाव और निष्कर्ष
सुरक्षित जल के लिए व्यावहारिक सुझाव
पर्वतारोहण के दौरान स्वच्छ और सुरक्षित पानी प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण है। भारत में ट्रेकिंग करते समय निम्नलिखित सुझाव अपनाएं:
- फिल्टर और प्योरीफायर साथ रखें: पोर्टेबल वॉटर फिल्टर (जैसे लाइफस्ट्रॉ, सॉयर मिनी) और क्लोरीन या आयोडीन टैबलेट्स हमेशा बैग में रखें।
- स्रोत की पहचान करें: केवल बहते हुए झरनों या पहाड़ी नालों का पानी लें, स्थिर तालाब या पोखर से बचें।
- उबालना: यदि संभव हो तो पानी को कम से कम 1-2 मिनट तक उबालें। ऊंचाई पर 3-5 मिनट तक उबालना ज्यादा अच्छा होता है।
वाटर प्योरीफिकेशन सिस्टम का तुलनात्मक सारांश
| प्रकार | लाभ | सीमाएँ |
|---|---|---|
| लाइफस्ट्रॉ/स्ट्रॉ फिल्टर | हल्का, तुरंत इस्तेमाल | केवल व्यक्तिगत उपयोग, बैक्टीरिया/परजीवी हटाता है |
| ग्रेविटी फिल्टर | समूह के लिए उपयुक्त, आसान संचालन | धीमा प्रक्रिया, रख-रखाव जरूरी |
| केमिकल टैबलेट्स (आयोडीन/क्लोरीन) | बहुत हल्का, किफायती | स्वाद बदल सकता है, कुछ वायरस नहीं हटाता |
| यूवी प्यूरीफायर (स्टेरिपेन) | तेज प्रक्रिया, वायरस हटाता है | बैटरी निर्भरता, पारदर्शी पानी जरूरी |
पर्यावरणीय जिम्मेदारी
- पानी के स्रोतों को दूषित करने से बचें – साबुन/शैम्पू या रसायन पास न लाएं।
- प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग न करें; रियूजेबल वाटर बॉटल्स चुनें।
- कचरा वापस लाएं और स्थानीय नियमों का पालन करें। यह न केवल प्रकृति की रक्षा करता है बल्कि भविष्य के पर्वतारोहियों के लिए भी जल स्रोत सुरक्षित बनाता है।
निष्कर्ष
भारत में पर्वतारोहण के लिए वाटर प्योरीफिकेशन सिस्टम का चुनाव आपके ट्रेकिंग स्थल, ग्रुप साइज़ और सुविधाओं पर निर्भर करता है। व्यक्तिगत सुरक्षा और पर्यावरणीय संरक्षण दोनों को ध्यान में रखते हुए ऊपर दिए गए विकल्पों और सुझावों का पालन करें ताकि आपकी यात्रा स्वस्थ, सुरक्षित और यादगार रहे।

